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*देभभर में रक्षाबंधन का त्योहार आज धूमधाम से मनाया गया- बहनों ने भाई की कलाई पर बांधा राखी*

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देव भूमि जे के न्यूज –

रक्षाबंधन का त्योहार आज देशभर में धूमधाम से मनाया गया। धर्मानगरी ऋषिकेश में भी सुबह से ही बहनों ने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर अपनी रक्षा हेतु भाइयों से वचन लिया।
आपको बता दे की रक्षा बंधन का त्यौहार अब विस्तृत होता जा रहा है , बाजारों में भैया भाभी की राखी, भाई बहन की राखी सहित तमाम रिश्तों के अनुसार रखिया मार्केट में मिल रही है। इस त्यौहार को बेहद बाजारवद से जोड़ दिया गया है, जिससे यह त्यौहार और उमंग और तरंग और हर्षोल्लास लेकर लोगों के बीच अपनी पैठ बन चुका है। आज बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना की। उत्तराखंड से लेकर भारत के विभिन्न राज्यों तक इस पर्व को प्रेम और स्नेह के साथ मनाया गया।

सबसे पहले पत्नी ने पति की कलाई पर बांधी राखी, जानिए रक्षाबंधन की कैसे हुई शुरुआत-

रक्षाबंधन की शुरुआत भविष्य पुराण, महाभारत, स्कंद पुराण और पद्म पुराण में वर्णित कथाओं से हुई थी। एक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र की पत्नी शची ने रेशम का एक धागा मंत्र शक्ति से पवित्र कर अपने पति की कलाई में बांधा था, जिससे उन्हें युद्ध में विजय प्राप्त हुई। संजोग से उसे दिन श्रावणी पूर्णिमा का दिन था और इस तरह से रक्षा सूत्र बांधने का यह त्यौहार शुरू हुआ।

पौराणिक कथाएं-

भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी- जब भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया और उनकी उंगली कट गई, तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया।
राजा बलि और भगवान विष्णु- जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को रसातल का राजा बना दिया, तो देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया।

रक्षाबंधन का महत्व-

रक्षाबंधन एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के प्रेम और स्नेह को दर्शाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधकर उनकी रक्षा का वचन लेती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का प्रण लेते हैं।

रक्षासूत्र बांधनें का मंत्र –

*येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।*
*तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।।*

संस्कृत में, “रक्षा बंधन” का शाब्दिक अर्थ है “सुरक्षा की गाँठ”। हालाँकि भौगोलिक क्षेत्रों में इसकी रस्में अलग-अलग होती हैं, लेकिन सभी में एक धागा बाँधना शामिल होता है। बहन (या बहन जैसी आकृति) अपने भाई की कलाई पर एक रंगीन, कभी-कभी अलंकृत, धागा बाँधती है। यह धागा बहन की अपने भाई के लिए प्रार्थनाओं और शुभकामनाओं का प्रतीक है। फिर भाई अपनी बहन को एक अनमोल उपहार देता है।

एक और कथा के अनुसार रक्षाबंधन पर गणेश की बहन, देवी मनसा, उनसे मिलने आईं। उन्होंने गणेश की कलाई पर राखी बाँधी। गणेश के पुत्र, शुभ और लाभ, इस सुंदर परंपरा से सहमत हुए, लेकिन इस बात से नाराज़ थे कि उनकी कोई बहन नहीं है। उन्होंने अपने पिता से एक बहन की याचना की ताकि वे भी रक्षाबंधन के उत्सव में शामिल हो सकें। बहुत समझाने के बाद, गणेश मान गए। संतोषी माँ की उत्पत्ति हुई और उसके बाद से तीनों भाई-बहन हर साल रक्षाबंधन मनाते हैं।

इस प्रकार दुनिया भर के हिंदुओं द्वारा भाइयों और बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य का सम्मान करने के लिए मनाया जाने वाला एक खूबसूरत त्योहार आज धूमधाम से मनाया गया।

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देवभूमि jknews

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