*भूटान की रोमांचक यात्रा वृतांत…. *
देवभूमि जे के न्यूज़-
लेखक-जयकुमार तिवारी
एक प्रसिद्ध और प्रेरक वाक्य है…”सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगानी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां ….इसका अर्थ है कि हमें अपने युवा और जीवंत समय में दुनिया की यात्रा करनी चाहिए, क्योंकि जीवन बीतने के बाद यह अवसर दोबारा नहीं मिलेगा। हमें यह जीवन कुछ दिनों के लिए मिला है, इसी में समय निकाल करके हमें अपने लिए कुछ रहस्य और रोमांच से परिपूर्ण यात्रा का आनंद लेना चाहिए। प्रकृति ने हमें इस धरती पर भेजा है और कितना खूबसूरत इसे बनाया है, इस खूबसूरती को देखने के लिए मुझे जब भी समय मिलता है अपनी सुविधा अनुसार जेब के अनुसार एक अनदेखी यात्रा के लिए निकल पड़ता हूं। जीवन एक यात्रा है, मैं बार-बार हमारे वेदों , पुराणों द्वारा कहे वाक्य “चरैवेति- चरैवेति” इसी वाक्य को आत्मसात कर मैं एक यात्रा पूरी होती है तभी दूसरी यात्रा के लिए मैं योजना बनाने लगता हूं, अबकी बार हमारी यह यात्रा भूटान के लिए है! क्योंकि बार-बार सोशल मीडिया से भूटान का जिक्र पढ़ने व सुनने को मिल रहा था इसलिए भूटान की यात्रा का मन बनाकर हम भूटान की यात्रा के लिए निकल पड़े। आपको बता दें कि भूटान की कहानी बौद्ध धर्म की उत्पत्ति और एकीकरण से शुरू होती है, जिसके बाद 17वीं शताब्दी में एक लामा ने इसे एकीकृत किया और एक राजशाही स्थापित हुई ।19वीं सदी में ब्रिटेन और भारत के प्रभाव में भूटान ने कई संधियाँ कीं, जिससे देश की आज की संवैधानिक राजशाही और भारत के साथ उसके विदेश नीति संबंधी संबंध बने. यह अपनी अनूठी संस्कृति, बौद्ध धर्म और ‘खुशहाल राष्ट्रीय उत्पाद’ पर ज़ोर देने के लिए जाना जाता है, जो भूटान को ‘ड्रैगन की भूमि’ के रूप में एक अलग पहचान देता है।
भूटान एक लोकतांत्रिक संवैधानिक राजतंत्र है, जहाँ राजा राज्य का प्रमुख और प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है।
भूटान की जनसंख्या 2025 में लगभग आठ लाख है। भूटान प्राचीन काल से एक स्वतंत्र राज्य रहा है, और कभी भी ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं बना। भूटान की मुद्रा ङुल्ट्रम है, जिसका भारतीय रुपया से आसानी से विनिमय किया जा सकता है।
मेरी बर्षों से भूटान जाने की दिली इच्छा थी और आखिरकार वह समय आ गया जब हम भूटान के लिए दिनांक 28 अगस्त को पत्नी रंजु तिवारी और हरीश विरमानी ,पूनम विरमानी हम चार लोग भूटान की यात्रा के लिए निकल पड़े। हमारी यात्रा ऋषिकेश से शुरू हुई सुबह 5:00 बजे तैयार होकर ऋषिकेश से रुड़की स्टेशन के लिए घर से निकले, रूड़की से लोहित एक्सप्रेस ट्रेन नंबर 15652 समय सुबह 7:45 पर स्टेशन पहुंची। ट्रेन 15 मिनट लेट थी और रुड़की से हमने न्यू अलीपुर द्वार के लिए 3 एसी में रिजर्वेशन कराया था। रुड़की से लगभग 36 घंटे की यात्रा जो की उत्तरप्रदेश,दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और बंगाल में यह ट्रेन न्यू अलीपुरद्वार में लगभग 1 घंटा लेट पहुंची। वहां से जल्दी-जल्दी उतरकर स्टेशन से बाहर आए और ₹1400 में जयनगर के लिए टैक्सी किराए पर लेकर हम चारों चल पड़े। जयनगर, फूल सोलिंग,जोकि भूटान का बॉर्डर है और जयनगर इंडिया का बॉर्डर है। न्यू अलीपुरद्वार से जयनगर की दूरी लगभग 55 किलोमीटर है जो कि लगभग 2 घंटे में हमने पूरी की। शाम को एक सरकारी आवास में हमारी रहने की व्यवस्था एक मित्र ने की थी, यात्रा की थकान को देखते हुए कमरे में सामान शिफ्ट किया। रात का डिनर लिया और आराम से हम सब सो गए ।
सुबह जल्दी 7:00 बजे हमारे गाइड का और ड्राइवर का फोन आया कि सर हम बॉर्डर पर पहुंच गये है। आप प्रवेश के लिए जो प्रक्रिया है डाक्यूमेंट्स लेकर आ जाइए। हमारे पास सारे डॉक्यूमेंट थे ,वैसे भूटान जाने के लिए मैं आपको बता दूं कि मतदाता पहचान(वोटर आईडी कार्ड) पत्र अथवा पासपोर्ट बेहद जरूरी है। हमने पासपोर्ट भी पास में रखा था। अंदर जाकर गाइड ने हमारा पासपोर्ट लिया और लगभग 1 घंटे में विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरते हुए हमने बॉर्डर कानूनी प्रक्रिया की पूर्ति की और अपने गाड़ी के पास पहुंच गए जो की सेवन सीटर कार थी।उस समय खूब जोरों की बारिश हो रही थी ।ड्राइवर का नाम नरेश था, बातचीत में नरेश फराटेदार हिंदी बोलने में माहिर था। यह बताना उचित होगा कि लॉकडाउन के बाद भूटान में प्रत्येक व्यक्ति के प्रवेश के लिए प्रतिदिन ₹1200 और गाइड का होना जरूरी है हम चारों के लिए एक गाइड जिसका एक दिन का ₹2500 और चारों का एक दिन का ₹ 4800, हमने होटल पहले से बुक कर रखा था जो की ₹2000 प्रतिदिन पर था। चार दिन और पांच रातों के लिए थिंपू में हमारा होटल बुक था। हमने चार दिन के लिए 19200 भूटान अथॉरिटी को जमा किया और वहां से कार में सवार होकर सामान लेकर गाइड सहित थिंपू के लिए रवाना हुए। थिपू शहर बॉर्डर से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर है। सुबह का नाश्ता हम लोगों ने ले लिया था और दोपहर पहुंचते पहुंचते लगभग 12:00 बजे हम लोगों ने फिर हल्का-फुल्का नाश्ता लिया। भूख ज्यादा नहीं थी तो हमारा यह यात्रा का कारवां निर्वाध गति से चलता रहा। विभिन्न पहाड़ी मार्ग से होते हुए टेढ़े-मेढ़े सड़कों से गुजरते हुए प्राकृतिक सौंदर्य का दर्शन करते हुए लगभग 7 घंटे की दूरी तय कर हम अपने होटल में पहुंचे। वहां गाइड द्वारा हमें निर्देश दिया गया कि आप लोग रात्रि विश्राम करें, सुबह हम घूमने के लिए निकलेंगे हमने भी सामान अपने-अपने कमरों में सेट किया। कैमरा बहुत ही सुंदर था और चुंकि ऑफ सीजन था इसलिए 3500 का कमरा हमें 200 में मिल गया था। हमारे मित्र धनंजय तिवारी ने होटल बुक कर रखा था और हमने रात का डिनर लिया रात्रि विश्राम के लिए कल सुबह की प्रतीक्षा करते हुए सो गए।
दूसरे दिन सुबह हम नहा धोकर फ्रेश होकर रूम से बाहर आए नाश्ता किया और ठीक 8:00 बजे हम दाचुला बॉर्डर एवं पूनाखा के लिए निकल पड़े दोचुला होते हुए पूनाखा लगभग 3001 फीट की ऊंचाई पर एक शानदार जगह है। रास्ते में कुहासा और बादलों के बीच से हमारी यात्रा अपनी गति से चलती रही, बीच-बीच में हल्की-फुल्की बारिश आई । हम रास्ते में दोचुला में 108 स्तूप बने हुए जिसे श्रद्धा पूर्वक हम लोगों ने परिक्रमा किया दर्शन किया । फोटोग्राफी की ,आपको दोचुला दर्रा के विषय में बता दूँ कि दोचूला दर्रा भूटान में थिंपू और पुनाखा के बीच एक खूबसूरत पहाड़ी दर्रा है, जो ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता का संगम है। 2003 के विद्रोह को कुचलने में चौथे राजा, जिग्मे सिंग्ये वांगचुक की जीत का जश्न मनाने के लिए इसका निर्माण किया गया था। दर्रे पर 108 स्मारक स्तूप (चोर्टेन) हैं, जो युद्ध के नायकों के सम्मान में बनाए गए हैं। यह दर्रा हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का मनोरम दृश्य प्रदान करता है और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जहाँ पर्यटक शांत वातावरण और भव्य परिदृश्यों का अनुभव करते हैं।
दर्रे पर एक शांतिपूर्ण मंदिर भी है, ड्रुक वांग्याल लखांग, जिसे 2008 में सबसे बड़ी राजमाता, आशी दोरजी वांग्मो वांगचुक ने बनवाया था। यह मंदिर राजा और देश की भलाई के लिए समर्पित है।
दोचू ला के पास रॉयल बॉटनिकल पार्क भी है, जो हिमालय के पौधों के लिए समर्पित है।
हमारी यात्रा पुनाखा पहुँची, पुनाखा नामक स्थान दो पवित्र नदियों, फो छू (पुरुष) और मो छू (महिला) के संगम पर स्थित है, जिसे मेल- फिमेल संगम कहा जाता है।
पुनाखा में चिमी लखांग मंदिर भी है, जिसे प्रजनन मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर अपने अनोखे लिंगों के भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है, जो प्रजनन क्षमता का प्रतीक माने जाते हैं।
आज पुनाखा एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जो एडवेंचर चाहने वालों के लिए रिवर राफ्टिंग और हाइकिंग जैसे अवसर प्रदान करते है।
पुनाखा 20 जिलों में से एक, पुनाखा जोंगखाग का प्रशासनिक केंद्र है । पुनाखा 1955 तक भूटान की राजधानी और सरकार का मुख्यालय था, जब राजधानी को थिम्पू स्थानांतरित कर दिया गया । यह थिम्पू से लगभग 72 किमी दूर है और राजधानी से कार द्वारा लगभग 3 घंटे लगते हैं। थिम्पू के विपरीत, यह सर्दियों में काफी गर्म और गर्मियों में गर्म होता है। यह समुद्र तल से 1,200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और भूटान की दो मुख्य नदियों, फो चू और मो चू, की नदी घाटियों में चावल मुख्य फसल के रूप में उगाया जाता है। इस जिले में जोंगखा व्यापक रूप से बोली जाती है।
थिम्पू से पुनाखा तक का सफ़र बेहद खूबसूरत है और आप पूरे समय अपनी खिड़कियों से चिपके रहेंगे।
1637 में ज़बद्रुंग न्गवांग नामग्याल ने पुनाखा द्ज़ोंग का निर्माण शुरू करवाया था। इसका मुख्य उद्देश्य तिब्बती आक्रमणों से बचाव के लिए एक मजबूत गढ़ बनाना और बौद्ध धर्म के केंद्र के रूप में इसे विकसित करना था। किले में प्रवेश शुल्क 500/ रुपये प्रति व्यक्ति है। विशाल परिसर में बना यह किला बेहद खूबसूरत है। दिनभर घूमने के बाद हमारी कारवां वापस थिंपू के लिए चल पडी़, होटल पहुँच कर रात्रि भोज के साथ ही नींद की आगोश में समा गए।
तीसरे दिन हम थिंपू शहर में घूमने के लिए निकले, सबसे पहले हम पहाड़ी पर बने महात्मा बुद्ध की विशाल प्रतिमा देखने के लिए पहाड़ी रास्तों से गुजरते हुए प्रवेश द्वार पर पहुंच गए। वहाँ प्रवेश शुल्क 500/ रूपये प्रति व्यक्ति है।
थिंपू में बुद्ध भगवान बुद्ध की विशाल और स्वर्ण-जड़ित बुद्ध दोर्डेन्मा प्रतिमा है, जो शहर के ऊपर एक पहाड़ी पर स्थित है और दुनिया की सबसे बड़ी बुद्ध प्रतिमाओं में से एक है. यह प्रतिमा शांति और समृद्धि का प्रतीक है और इसके आधार में एक ध्यान कक्ष के अंदर 1,25,000 से अधिक छोटी बुद्ध प्रतिमाएँ हैं। यह प्रतिमा भूटानी वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है और भूटान के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह प्रतिमा 169 फीट (लगभग 51 मीटर) ऊँची है और सोने से ढकी हुई है. यह प्रतिमा थिम्पू घाटी के दक्षिणी प्रवेश द्वार पर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है यह भूटान के लोगों को शांति और खुशी का संदेश देती है. प्रतिमा के पास से थिम्पू शहर, आसपास की पहाड़ियों और बर्फीली चोटियों का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है. यह एक शांत और आध्यात्मिक स्थल है जहाँ आप प्रकृति और आध्यात्मिकता से जुड़ सकते हैं।
यह भूटानी संस्कृति और बौद्ध धर्म की गहरी परंपरा का प्रतिनिधित्व करती है. पवित्र स्थल का सम्मान करने के लिए शालीन और ढके हुए कपड़े पहनें प्रतिमा और आसपास के क्षेत्र की तस्वीरें ली जा सकती हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में फोटोग्राफी वर्जित हो सकती है.
लगभग दो घंटे महात्मा बुद्ध के इस सुंदर परिसर और मंदिरों के दर्शन कर मन अभिभूत हो गया। हमने विभिन्न कोणों से अलग-अलग फोटोग्राफी की और वहां से हम दूसरे एक हिंदू मंदिर जो की माता रानी का प्रमुख मंदिर था और मंदिर में विभिन्न देवी देवताओं और विशाल शिवलिंग, गणेश, दुर्गा, काली सहित तमाम देवी देवताओं की मूर्ति एक शानदार और विशाल मंदिर में स्थापित की गई थी। वहां लगभग 45 मिनट तक दर्शन किए और वहां से आगे की यात्रा के लिए हम निकल पड़े।
वहां से हम सिंपली भूटान के लिए पहुंचे जहां प्रवेश शुल्क प्रति व्यक्ति ₹1000 था, हमने टिकट लिया और प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो वहां भूटानी शैली और भूटानी परिवेश में हमारा पारंपरिक रूप से स्वागत किया गया। वहां पर चावल से बने देसी दारू दारू जोकि सुंदर सुराही से प्याली में दी गई अधिकांश लोगों ने इस पेय पदार्थ का स्वाद लेकर अंदर प्रवेश किया।
आपको बता दे कि थिम्पू में सिम्पली भूटान एक जीवंत और इंटरैक्टिव “लिविंग” संग्रहालय है जहाँ आप एक ही स्थान पर भूटानी ग्रामीण जीवनशैली, पारंपरिक वास्तुकला, शिल्पकला और रीति-रिवाजों का अनुभव कर सकते हैं। यह युवा विकास निधि द्वारा संचालित है और आपको पारंपरिक घरों को देखने, भूटानी कलाकृतियों को आज़माने और स्थानीय व्यंजनों का स्वाद लेने का मौका देता है। यह संग्रहालय सीमित समय वाले आगंतुकों या बच्चों के साथ परिवारों के लिए एक आदर्श सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करता है। हम चारों
लोगों ने वहां भूटानी नृत्य और भूटानी व्यंजनों का स्वाद लिया। मक्खन से बने चाय, मीठे भात खाते हुए भूटानी नृत्य और वहां के कल्चर , कला और संस्कृति की प्रस्तुति को बहुत ही नजदीक से देखा, किस प्रकार भूटान में पहले खेती बाड़ी और वहां के लोग जीवन यापान करते थे विस्तार से दिखाया गया था। वहां पर निश्चित रूप से हमें बहुत आनंद आया। मक्खन से बने चाय, मीठे चावल और भुने हुए चावल सहित कई तरह के व्यंजनों का स्वाद लेने के बाद हम वहां से निकलकर भूटान के पारंपरिक राष्ट्रीय ड्रेस पहन कर फोटो खिंचवाई और वहां से हम थिंपू मेमोरियल छोर्टेन पहुंचे। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल है, जो भूटान के तीसरे राजा जिग्मे दोरजी वांगचुक के सम्मान में 1974 में बनाया गया था। यह एक बड़ा स्तूप है जो कई भूटानी लोगों के लिए पूजा और ध्यान का स्थान है, और यह शांति और समृद्धि का प्रतीक है। मेमोरियल चोर्टेन थिंपू का एक दर्शनीय और पूजनीय स्थल है जो भूटान की आध्यात्मिक विरासत को दर्शाता है।
चौथे दिन सुबह नौ बजे हमने अपना सामान पैक किया नाश्ते के बाद हमने थिंपू शहर को अलविदा कहा और एक और शहर देखने के लिए हम अपने कार में सवार होकर पारो के लिए निकल पड़े। विभिन्न पहाड़ी मार्ग से गुजरते हुए अलौकिक अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य को निहारत हुए हम पारो पहुंचे। सबसे पहले हमने भूटान का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का दीदार किया, जो की पहाड़ी पर बना भूटान का एक मात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है बहुत ही खूबसूरत दृश्य था। वहां से हम पारो जैसे खूबसूरत शहर में पहुंचे चारों तरफ धान की फैसले लहलहा रही थी, सुंदर प्राकृतिक दृश्य हरे-भरे खेत, नदियां निश्चित रूप से मनभावन और सुहावना दृश्य प्रदान कर रहे थे। एक ग्रामीण क्षेत्र में जाकर धान की लहलहाते फसलों और भूटान का पारो शहर अपनी पा चू नदी, हरे-भरे चावल के खेतों और टाइगर्स नेस्ट जैसे धार्मिक स्थलों के लिए जाना जाता है। पारो सदियों से तिब्बत जाने वाले मार्गों का केंद्र रहा है। पारो में राष्ट्रीय संग्रहालय, प्राचीन रिनपुंग द्ज़ोंग (किला) और पारंपरिक फार्महाउस भी देखने लायक हैं, जो भूटान की समृद्ध संस्कृति और जीवनशैली को दर्शाते हैं। चू नदी के किनारे स्थित पारो, धान के खेतों, पहाड़ी इलाकों और शंकुधारी जंगलों से घिरी एक मनोरम घाटी है। यह क्षेत्र पारंपरिक लकड़ी के फार्महाउसों से भरा है, जो भूटानी ग्रामीण जीवनशैली को दर्शाते हैं। यह भूटान की सबसे उपजाऊ घाटियों में से एक है, जहाँ प्रसिद्ध लाल चावल का उत्पादन होता है। हमने 160 रूपये में लाल चावल खरीदा जो कि एक पीपा भरकर हमें दिया गया। लगभग डेढ़ किलो वजन था। भूटान में कोई भी चीज तौकर नहीं मिलता है, वहां चाहे सब्जी हो चाहे खाद्य पदार्थ हो एक निश्चित पैकिंग में निश्चित मूल्य में मिलता है और मूल भावना के बराबर है पूरे बाजार में जहां भी आप जाएंगे भारतीय रुपए स्वीकार किए जाते हैं खुशी-खुशी भारतीय रुपए लेकर उसके बदले आपको जो वस्तु खरीदना चाहते हैं खरीद सकते हैं 5,10, 20,50,100,200,500 के सभी नोट स्वीकार किए जाते हैं और भारतीय रूपयों की भांति वहां भूटानी रुपए बिल्कुल बराबर है। आप कैश के रूप में वहां खरीदारी कर सकते हैं एटीएम- पेटीएम वहां कोई काम नहीं करता है।
पारो में टाइगर्स नेस्ट तकत्संग लखांग पारो का सबसे प्रतिष्ठित मठ, जो एक खड़ी चट्टान पर स्थित है। बहुत सारे युवा और विदेशी लोग लगभग 3 घंटे की यात्रा कर ऊंची खड़ी पहाड़ की चोटी पर बने माथो को जो कि लगभग 10 से 12 की संख्या में है कठिन चढ़ाई करके पहुंचते हैं वहां जाने के लिए घोड़े खच्चर भी उपलब्ध है परंतु समय अभाव के कारण और थकान के कारण हम नीचे से ही उन धार्मिक मठों को जो की बुरी शक्तियों को भगाने के लिए वहां की संतो द्वारा उच्च चोटी पर तपस्या की गई थी और उन संतों ने वहां पर मठ बनाया था, निश्चित रूप से बेहद कठिन चढ़ाई थी हमने नीचे से ही दर्शन किया प्रणाम किया और हरे-भरे चीड़ के पेड़ों के बीच में फोटोग्राफी की, चाय पी और वहां से हम पारो शहर के लिए निकले। शहर में जाकर हमने एक होटल में दो रूमलिया रात्रि में डिनर किया । सुबह हमारी यात्रा पूरी हो गई थी और वहां से हम अपना सामान पैक किया और कार में सवार होकर जयनगर के लिए निकल पड़े। भूटान में दो चीजें बहुत सस्ती है एक तो पेट्रोल और दूसरी शराब , वहां पेट्रोल लगभग ₹61 प्रति लीटर के हिसाब से था।
जयनगर पहुंचकर हमने एक कार लिया । हमारी ट्रेन न्यू अलीपुरद्वार से थी, अमरनाथ एक्सप्रेस में ,क्योंकि हम तीन घंटा पहले न्यू अलीपुरद्वार स्टेशन पर पहुंच गए थे हमने वेटिंग रूम में इंतजार किया। ट्रेन लगभग डेढ़ घंटे लेट आई। ट्रेन में सवार हुए और वहां की से सीधे रुड़की के लिए निकल पड़े। दूसरे दिन पूरे 36 घंटे की यात्रा की पश्चात हम सुबह 6:00 बजे रुड़की पहुंचे वहां से हम ऋषिकेश के लिए सवारी लिए और अपने घर लगभग 8:00 बजे पहुंच गए बहुत खूबसूरत अनुभव लिए हमारी यात्रा का समापन हुआ…
