*परीक्षा की तैयारी करने के अचूक नुस्खे*
देवभूमि जे के न्यूज़-जय कुमार तिवारी-
( लेखक-निर्मला वर्मा- विनायक फीचर्स)
मां ने जोर से दरवाजा भड़भड़ाया ‘कब से आवाज दे रहीं हूं रेखा, सुनती नहीं, खाना तैयार है।’
पढऩे में तल्लीन रेखा ने सचमुच ही मां की कोई आवाज नहीं सुनी थी। एकाग्रता इसी को कहते हैं। किसी भी कार्य में स्वयं को इतना डुबा देना कि दीन-दुनिया का कुछ पता ही न रहे।
परसों अभिषेक की मां आई थी, वह अभिषेक की ओर से अत्यंत चिंतित थी। अभिषेक अब हायर सेकण्डरी की परीक्षा देगा पर उसका मन पढ़ाई में जरा भी नहीं लगता, हर विषय में नंबर बहुत कम आ रहे हैं किंतु अभिषेक को मंदबुद्धि बालकों की श्रेणी में भी नहीं रखा जा सकता क्योंकि पढ़ाई के अतिरिक्त बाकी सभी कार्यों को वह बहुत शीघ्र और अत्यंत कुलकुशतापूर्वक कर लेता है। खेलों में भी सदा सबसे आगे ही रहता है और अनेक इनाम लाता है।
तब उसके ठीक से न पढ़ पाने का क्या कारण है? निश्चय ही पढऩे में एकाग्रता की कमी। एकाग्रता आती है इच्छाशक्ति से। जिस कार्य को करने की आपकी इच्छा होगी आप वह कार्य अवश्य ही मन लगाकर करेंगे। मन लगाकर कार्य किया जाएगा तो वह अवश्य ही अच्छा भी होगा।
सवाल है उक्त कार्य विशेष की इच्छा का होना, तात्पर्य यह कि सर्वप्रथम आप स्वयं में पढऩे के लिए ‘चाह’ उत्पन्न करें। मानव स्वभाव में (जिज्ञासा) उत्सुकता तो अवश्य होती है, प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी बात के लिए उत्सुक रहता है- कुछ लोग पास-पड़ोस व परिचितों के कार्यकलापों के बारे में जानने व गपशप करने को या उनका मजाक उड़ाने को उत्सुक रहते हैं तो कुछ खेलने या फिल्म देखने के लिए या संगीत सुनने के लिए। इसी स्वाभाविक उत्सुकता को सुुंदरता से मोड़ देकर पढ़ाई की ओर लाइए, क्योंकि इस उम्र तक आकर अपने भले-बुरे की पहचान तथा पढ़ाई की आवश्यकता का ज्ञान सभी विद्यार्थियों को हो जाता है। वास्तव में ‘ज्ञान’ से अधिक आनंददायक अन्य कोई वस्तु है ही नहीं।
हो सकता है स्कूलों के अत्यधिक अनुशासन अथवा अध्यापकों या माता- पिता के रूखे स्वभाव व दबाव के कारण कुछ किशोर-किशोरियों का ध्यान पढ़ाई से हट रहा हो। वैसे एकाग्रता तो जन्मजात गुण है। छोटा-सा बच्चा भी अपने खिलौनों में उसी प्रकार पूर्ण एकाग्रता से खो जाता है जैसे कोई मुनि ध्यानमग्न हो पर जैसे-जैसे मनुष्य की आयु बढ़ती जाती है वैसे-वैसे एकाग्रता की कमी होती जाती है, क्योंकि ध्यान विविध विधाओं में बंटता जाता है किंतु प्रयत्न करने पर आप पढ़ाई में एकाग्रता को पुन: प्राप्त कर सकते हैं। बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थियों को अक्सर यही शिकायत होती है कि वे पूर्ण एकाग्रता से पढ़ नहीं पाते, एक अध्याय को कई-कई बार पढऩा पड़ता है, ध्यान बार-बार उचटता जाता है। इसके लिए निम्न उपाय करके देखिए:-
1. पढऩे के लिए अपनी मेज-कुर्सी खिड़की के पास हवादार स्थान में रखिए, जहां प्रकाश की अच्छी व्यवस्था हो पर बाहर का कुछ दिखाई न देता हो। दिन में सूर्य का प्रकाश रात में टेबिल लैंप होना आवश्यक है। इससे एकाग्रता आती है जिस विषय की पढ़ाई करनी हो उसके अतिरिक्त कोई सामान या किताबें-कापियां मेज पर मत रखिए, इससे आपका ध्यान उचटने की आशंका है। (क) आपके सिर में दर्द है या जुकाम है, तो पढऩे बैठने से पूर्व दवाई लेकर बैठिए। मन में यह वहम लेकर मत बैठिए कि आज आप अस्वस्थ हैं, इसलिए नहीं पढ़ पा रहे। (ख) ऐसी पोशाक, जूते-मोजे तुरंत बदल डालिए जिसमें अधिक देर तक बैठने में आपको चुभन या तकलीफ महसूस होती हो। जिन कठिनाइयों को आप दूर नहीं कर सकते उनके बारे में सोचिए भी मत। (ग) पढ़ने वाले व्यक्ति के लिए एकाग्रता की पहली शर्त है पूरी नींद। अत: व्यर्थ की गपशप या मोबाइल देखने में स्वयं को मत थकाइए और नींद का समय मत गंवाइए, न कोई ड्रग लीजिए। आजकल कॉलेज के छात्रों में नींद भगाने की दवा लेने का आम रिवाज हो गया है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पूरी नींद सोइए और डटकर पढ़िए।
2. मेज पर रखा कोई चित्र या कोई वस्तु जो आपका ध्यान भटकाती हो तुरंत हटा दीजिए। किसी मनोरंजक वस्तु की ओर ध्यान आकर्षित होने की संभावना है तो उसे वहां से हटा दीजिए।
3. सर्दियों के किसी ठंडे दिन में जिस प्रकार तैराक को पानी में घुसने में डर लगता है और वह पानी में अंगूठा डालकर पानी की ठंडक को महसूसता है तो उसे पानी और भी ठंडा लगने लगता है पर एक बार मन को दृढ़ करके जब वह पानी में कूद पड़ता है तो शरीर पानी के तापमान के साथ एकाकार हो जाता है और फिर उसे सर्दी महसूस नहीं होती। उसी प्रकार एक बार प्रयत्न करके मन को यत्न पूर्वक जुटाकर पढऩे बैठ जाइए फिर आप देखेंगे कि इसमें कितना आनंद आता है। जब तक पूरी तरह थक न जाएं, नींद आपके ऊपर पूरी हावी न हो जाए आप बराबर पढ़ते ही रहिए।
4. जब कोई विषय कठिन लगने लगता है तो दिल करता है कि दस मिनट का विश्राम ले लिया जाए पर कई विद्यार्थियों मैंने देखा है कि वे, मां! मुझे दस मिनट बाद जगा देना कहकर ऐसे घोड़े बेचकर सोते हैं कि मां बेचारी उन्हें जगाती-जगाती खुद जागती रह जाती है और वे तो दो-तीन घंटे के लिए गोल हो जाते हैं। अत: समय खोये बिना आराम करने के आजमाए हुए नुस्खे अपनाइए जैसे (1) आंखें झपकाना। आंखें किताबों पर गड़े-गड़े दुखने लगती हैं उन्हें कम से कम तीस बार झपकाइए और पुन: ताजगी महसूस करिए।
(2) दोनों आंखों को अपनी दोनों हथेलियों के बीच बंद करके कुछ मिनट अंधेरे में रखिए आपकी थकी आंखों को राहत मिलेगी।
(3) हल्का-फुल्का व्यायाम कीजिए जैसे दोनों आंखों को बंद करके कुछ मिनट सीधे बैठिए और दोनों पुतलियों को घड़ी के पेंडुलम की भांति कभी इधर तो कभी उधर के किनारे पर ले जाइए।
(4) आंखें बंद करके आपस के चारों बिंदुओं को कल्पना में बारी-बारी से देखिए। इससे आंखों को आराम मिलेगा।
(5) उठकर कमरें में चक्कर लगाइए। आपकी कमर भी सीधी हो जाएगी, नींद भी भाग जाएगी।
(6) एक ग्लास पानी पी लीजिए। दिन में चाय या काफी भी पी सकते हैं। रात को अधिक चाय पीने से नींद नहीं आती और नींद आपको खराब नहीं करनी है।
(7) दस मिनट के लिए जमीन पर लेट जाइए अपने शरीर के तमाम अंगों को ढीला करके समझिए श्वासन करना है।
5. अधिकांश विद्यार्थियों को खेलों में, गपशप में, नये-नये कपड़ों में या विपरीत सेक्स के मित्रों में पढ़ाई की अपेक्षा अधिक मन लगता है, इसी कारण उन्हें पढ़ाई अच्छी नहीं लगती और इन्हीं कारणों से पढ़ाई में एकाग्रता नहीं आ पाती। अत: अपने पढ़ाई के विषय को रुचिकर बनाइए –
(क) स्वयं से प्रश्न पूछिए, देखिए आपको कितना आता है या याद है।
(ख) पिछली परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र लेकर उनके उत्तर स्वयं दीजिए।
(ग) जो भी पढ़ें उनके नोट्स बनाइए।
6. जो विषय कठिन लगे हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाइए, यह नहीं कि उसे उठाकर अलग रख दें। पढ़ाई के रास्ते में जो भी बाधाएं आएं दूर कीजिए। रोजाना अपनी पढऩे-बैठने की अवधि अधिक करते जाइए। एक बार पढऩा आपकी आदत में शुमार हो जाएगा तो कोई परेशानी नहीं होगी और अच्छी आदतें बनाने में समय तो लगता ही है। कई बार बहुत ही छोटी-छोटी बातों के कारण भी पढ़ाई से मन उचटने लगता है जैसे कमरे में कोई छिपकली, चूहा, ततैया या चिडिय़ा आ गई और आप उसे भगाने में लग गए। आपके दांत या होंठ में सूजन व दर्द होने लगा, बाहर गाडिय़ों के आने-जाने का शोर भी ध्यान को बार-बार उचटा देता है पर यह सब बड़ी तुच्छ बातें हैं जो उन्हीं को महसूस होती हैं जो वाकई पढऩा नहीं चाहते। आपको स्वयं से प्रश्र करना चाहिए कि आप सचमुच में पढऩा चाहते हैं या नहीं? अपने निश्चय एवं इच्छाशक्ति की दृढ़ता के परीक्षण के लिए आप स्वयं से वादा कीजिए कि अमुक पुस्तक के इतने अध्याय पढऩे के बाद ही हम अब उठेंगे या खाना खाएंगे अथवा इतना कोर्स पूरा कर लेने पर ही कोई पिक्चर या खेल देखेंगे। मेरे बच्चे अक्सर पुस्तक के कुछ अध्याय पढ़ने तक के लिए मौन व्रत धारण कर लेते हैं- इस प्रकार उतना कोर्स पढ़ने के बाद ही बोलने की बाध्यता के कारण कोर्स एकाग्रता से पढ़कर शीघ्रता से पूरा करना होता है।
कोई विषय सचमुच ही इतना कठिन है कि आपके पल्ले ही नहीं पड़ता तो उसके लिए शीघ्रातिशीघ्र शिक्षक की सहायता लीजिए, अपने उत्साह को मन्द पढऩे से पूर्व ही।
कोई विशेष प्रश्न, कोई विशेष समस्या आपको तंग करती है तो पहले उसी पर काम कीजिए, ताकि बाकी पढ़ाई के समय आप तनाव से मुक्त रहें। कोई समस्या या प्रश्न आपसे हल नहीं हो रहा तो उसे उस समय मन से निकाल दीजिए और बाकी पढ़ाई कीजिए। उस प्रश्न या समस्या को अगले दिन दूसरे विद्यार्थियों से या शिक्षकों से समझ लीजिए।
भटकता मन कभी सही अर्थों में पढ़ नहीं सकता। एकाग्रता ही विद्यार्थी के लिए सफलता की कुंजी है। एक बार एकाग्रता उत्पन्न कर लेने पर वह जीवन के सभी क्षेत्रों में फलदायी हो जाती है, जैसे कार चलाना, पेंटिंग, खेल, डॉक्टरी, इंजीनियरी अथवा सभी पेशों में। अत: पढ़िए और पूरे नंबर पाइए। *(विनायक फीचर्स)*
