*मलेशिया (कुआलालंपुर) की यात्रा वृत्तांत*
देव भूमि जे के न्यूज –
मलेशिया (कुआलालंपुर) की यात्रा वृत्तांत –
मित्रों जीवन एक यात्रा है! पैदा से होने से लेकर मरने तक हमारे वेद पुराणों का एकमात्र संदेश है- “चरैवेति -चरैवेति” जीवन में निरंतर चलते रहिए, मेरा मन सदैव प्रकृति के बने हुए जगहों को देखने के लिए लालायित रहता है ।मैं जब एक यात्रा पूरी करता हूं , यात्रा की दूसरी योजनाएं बनाने में लग जाता हूं। और प्रकृति मेरी मदद करने के लिए सदैव तत्पर रहती है। लगभग पूरे भारत में घूमने के बाद मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं दुनिया में जितना संभव हो सके प्रकृति के बनाए हुए जगहों का अवलोकन करूं।
इसी कड़ी में मेरी पहली विदेश यात्रा मलेशिया की दिनांक 29 जून से लेकर 5 जुलाई तक संपन्न हुई .हालांकि इससे पहले तीन -चार बार नेपाल के विभिन्न जगहों का मैं अवलोकन कर चुका हूं, लेकिन मैत्रिक संबंध के चलते नेपाल को विदेश का दर्जा भारत में नहीं दिया जाता है, क्योंकि नेपाल से भारत का बेटी- रोटी का रिश्ता है।
मैं मलेशिया की यात्रा के लिए 29 जून को 12/30बजे ऋषिकेश से दोपहर वोल्वो बस में सवार होकर दिल्ली एयरपोर्ट के लिए निकल पड़ा।मेरी फ्लाइट दिल्ली से रात्रि 11.45 पर थी। चूंकि 29जून को रविवार था इसलिए ट्रैफिक जाम की समस्याओं से दो -चार होना लाजिमी था। हमें रुड़की में ही 5 बज गए।अब हमें चिंता सताने लगी कि हम समय से पहुंच पाएंगे या नहीं। खैर गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी मुजफ्फरनगर तक जाते-जाते हमें 7:00 बज गए 8:00 बजे मेरठ पहुंची है और गाजियाबाद में 9:15 बज गए अब इस बीच लग रहा था की एयरपोर्ट पर हमारा पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। तभी मेरे बेटे अनुराग तिवारी ने एक सुझाव दिया की आप नोएडा गोल चक्कर पर उतर जाओ, वहां राहुल द्विवेदी आपको किराए की टैक्सी लेकर खड़े हैं। वहां से आप एयरपोर्ट जल्दी पहुंच जाओगे, खैर 10:00 बजे लगभग नोएडा गोल चक्कर बस पहुंची वहां हमने बस को छोड़ दिया और किराए की टैक्सी लेकर 11:00 बजे एयरपोर्ट टर्मिनल 3 पर पहुंच गए। लोगों से रिक्वेस्ट करते हुए भागते हुए अंदर गए और किसी तरह प्राथमिक जांच प्रक्रियाओं को पूरी कर हम अपने उड़ान के दरवाज़े तक पहुंच गए। फ्लाइट आधे घंटे लेट थी हमने राहत की सांस ली और ठीक 12:15 पर हमारी एयर एशिया की फ्लाईट मलेशिया के लिए उड़ान भरली। लगभग 5:30 घंटे की यात्रा के बाद हम मलेशिया पहुंचे , एयरपोर्ट पर वीजा की लाइन में खड़े हुए, चूकि सुबह का टाइम था केवल दो लोग काउंटर पर बैठे थे, उससे काफी भीड़ हो गई थी । हमारा नंबर आया तो सभी कुछ ठीक- ठाक रहते हुए एक फार्म एजेंट ने ऑनलाइन नहीं दिया था। उसका प्रिंट जरूरी था।उस फॉर्म में पूरा डिटेल होता है। फिर हमें दूसरे काउंटर पर जाकर वह फॉर्म भरना पड़ा फिर हम लाइन में लगे, इस आपा- धापी में हमारे ढाई घंटे निकल गए। जो कार हमें एयरपोर्ट से रिसीव करने आई थी, उसके ड्राइवर ने हमें कहा कि हमारा समय पूरा हो गया आप दूसरी गाड़ी से आईए।
हमने स्थानीय ऐप से दूसरी गाड़ी बुक की और एयरपोर्ट से होटल के लिए प्रस्थान किया होटल पहुंचकर पता चला कि हमारी एंट्री 10:00 बजे थी लेकिन इस समय 1:00 बज रहे हैं, हमें एक घंटा इंतजार के लिए कहा गया खैर 1 घंटे बाद हमें एक बड़ा सा रुम मिला और हम फ्रेश होकर कॉफी और बिस्किट लिया फिर सो गए, लगभग 2 घंटे आराम करने के बाद 5:00 बजे नींद खुली, एक किराए की कार बुक किया और लिटिल इंडिया मार्केट के लिए निकल पड़े। लिटिल इंडिया मार्केट में भारतीय लोगों द्वारा भारतीय परिधान विभिन्न प्रकार के भारतीय वस्तुओं का एक विशाल मार्केट है, वहां हमने कुछ खरीदारी की और 8:00 बजे रात्रि को वहीं से शाकाहारी भोजन पैक करा कर होटल के लिए वापस आ गए। होटल में बैठकर हम दोनों पति-पत्नी ने भोजन किया और नींद की आगोश में जल्दी ही समा गए ,क्योंकि दिन भर की थकान थी और नींद आ रही थी।
दूसरे दिन सुबह उठ नहा धोकर तैयार हुए और छठी मंजिल पर स्थित होटल के रेस्टोरेंट में नाश्ता की टेबल पर पहुंच गए, वहां एक तरफ शाकाहारी लोगों के लिए और एक तरफ मांसाहारी लोगों के लिए टेबल लगे हुए थे। हमारे लिए नाश्ते में फ्रूट ,ब्रेड, डोसा, इडली सहित बहुत सारे आइटम उपलब्ध थे ।हमने अपने पसंद के अनुसार नाश्ता किया और ठीक 10:00 ड्राइवर का फोन आया। हम नीचे कार में पहुंचे ,वहां से हम घूमने के लिए निकल पड़े, यात्रा के आज आज दूसरे दिन हमें ड्राइवर ने बताया की आपको हम 2:00 बजे तक ट्विन टावर तक घुमाएंगे। लगभग 45 मिनट की यात्रा के बाद हम कुआलालंपुर मलेशिया के मशहूर ट्विन टावर के सामने खड़े थे, हमारी टिकट पहले से ऑनलाइन बुक थी, सो हमें शीघ्रता से प्रवेश मिल गया। अंदर पहुंच कर लिफ्ट एवं स्वचालित सीढ़ियों से होते हुए ट्विन टावर के प्रथम पड़ाव पर पहुंचे दोनों टावरों के बीच में एक सेतु बना हुआ था। उस पर पहुंचकर हमें फोटो और शहर की बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों को देखने के लिए 20 मिनट का समय दिया गया। हमें एक टोकन जो की एक ग्रुप में जो कि लगभग 10 लोगों की होता है, एक कलर का टोकन देकर बारी-बारी से उन्हें घूमने के लिए भेजा जाता है।
ट्विन टावर के विषय में आपको बता दें कि पेट्रोनास ट्विन टावर्स , मलेशिया के कुआलालंपुर में गगनचुंबी कार्यालय भवनों की जोड़ी , जो दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों में से एक है । ट्विन टावर्स का निर्माण मलेशिया की राष्ट्रीय पेट्रोलियम कंपनी पेट्रोनास को अर्जेंटीना में जन्मे अमेरिकी वास्तुकार सीज़र पेली द्वारा डिजाइन किया गया है । यह टावर 1998 में बनकर तैयार हुआ था । प्रत्येक टॉवर की योजना एक समान है: एक आठ-पालित गोलाकार संरचना जिसमें 88 मंजिलों का उपयोग करने योग्य स्थान है और एक पिरामिड के आकार का शिखर है जो एक पतले स्टील के शिखर से सुसज्जित है । दोनों की ऊंचाई 1,483 फीट (452 मीटर) है, जिसमें शिखर और शिखर के लिए 242 फीट (73.6 मीटर) शामिल हैं। प्रत्येक इमारत को इसकी परिधि के चारों ओर 16 बड़े स्तंभों द्वारा सहारा दिया गया है, जो कि फ्रेम के बाकी हिस्सों के साथ, संरचनात्मक स्टील के बजाय उच्च-शक्ति, स्टील-प्रबलित कंक्रीट से बने हैं; बाहरी आवरण स्टेनलेस स्टील और कांच का बना है । एक दो मंजिल ऊंचा स्काईब्रिज 41वीं और 42वीं मंजिलों के बीच दो टावरों को जोड़ता है।1996 में, जब इमारतों में शिखर जोड़ दिए गए (और इस प्रकार प्रत्येक अपनी पूरी ऊंचाई पर पहुंच गया), पेट्रोनास ट्विन टावर्स को दुनिया की सबसे ऊंची इमारत घोषित किया गया, जिसने पूर्व रिकॉर्ड धारक, 108-मंजिला इमारत को पीछे छोड़ दिया।शिकागो में सियर्स (अब विलिस) टॉवर । सियर्स टॉवर की छत वास्तव में ट्विन टावर्स की तुलना में 200 फीट (60 मीटर) अधिक ऊंची थी, लेकिन टावरों के शिखर पर स्थित शिखरों को समग्र वास्तुशिल्प संरचना के अभिन्न अंग के रूप में माना जाता था बदले में, ट्विन टावर्स ने 2003 में अपनी प्रमुख स्थिति खो दी, जब एक शिखर को ट्विन टॉवर के ऊपर रखा गया था।ताइपेई 101 (ताइपेई वित्तीय केंद्र) भवन, ताइपेई, ताइवान में है, और यह संरचना 1,667 फीट (508 मीटर) की ऊंचाई तक पहुंच गई है। हम दूसरे लिफ्ट में सवार होकर 88 मंजिल पर पहुंचें, जोकि चारों तरफ से वह घिरा हुआ था और दीवारों पर पारदर्शी शीशे से पूरा शहर बौना दिखाई दे रहा था ।वहां रेस्टोरेंट खरीदारी के लिए विविध प्रकार के स्टोर बने हुए थे, लगभग 20 मिनट रुकने के बाद हम लिफ्ट और स्वचालित सीढ़ियों से सीधे ट्विन टावर से नीचे आ गए।
दोपहर के 1:00 चुके थे रास्ते में हमने एक होटल से खाना पैक कराया और लगभग 1:30 बजे होटल पहुंच गए दोपहर का लंच किया और कुछ देर आराम करने के बाद फिर से एप द्वारा एक कार बुक कर चीनी मंदिर के लिए निकल गए। लगभग 4:00 बजे चीन मंदिर पहुंचे जो की एक विशाल प्रांगण में विशाल मंदिर था दिव्यता और भव्यता से परिपूर्ण उसे मंदिर में भगवान गौतम बुद्ध की तीन विशाल मूर्ति के साथ ही छोटी-छोटी मूर्तियां स्थापित की गई थी ।वहां लोग अगरबत्ती जलाकर प्रार्थना कर रहे थे ।बगल में सुंदर गार्डन बना हुआ था। लगभग 2 घंटे घूमने के बाद वापस होटल के लिए निकल पड़े रास्ते में हमने ड्राइवर से फिर कहा कि किसी शाकाहारी होटल में ले चलो शाकाहारी होटल में पहुंचकर हमने रात्रि के लिए लंच पैक कराया और होटल पहुंच गए लंच के बाद हम सो गए।
यात्रा के तीसरे दिन हम सुबह होटल में तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर पहुंचे, हम शाकाहारी है, इसलिए शाकाहारी और मांसाहारी लोगों के लिए अलग-अलग काउंटर लगे हुए थे हमने जल्दी-जल्दी नाश्ता किया। नाश्ता करने के पश्चात ठीक 10:00 बजे ड्राइवर का फोन आया आज हम पुत्रजया जो एक शानदार मस्जिद है और मस्जिद के बगल में मलेशिया के प्रधानमंत्री का प्रशासनिक कार्यालय है, इसके साथ ही शासन- प्रशासन में लगे लोगों के आवास भी है बेहद खूबसूरत जगह में से एक है! वह पहुंचकर कुछ फोटोग्राफ और वीडियो को कमरे में कैद करते हुए पास ही एक नदी में नौका विहार के लिए हम टिकट काउंटर पर गये। हमारा टिकट पहले से ही ऑनलाइन बुक था कुछ देर इंतजार करने के बाद हम स्टीमर में सवार हो गए स्टीमर चारों तरफ शीशे से घिरा हुआ था, और बैठने के लिए बेहद खूबसूरत कुर्सीयां लगी हुई थी। चारों तरफ से बंद इस स्टीमर पुरी तरह से वातानुकूलित था। गर्मी के कारण बाहर बुरा हाल था।पर अंदर ठंडक थी।स्टीमर में देश-विदेश से लोग आए हुए थे, और उसमें स्कूलों के बच्चे भी थे, लगभग 1 घंटे तक स्टीमर में हमने सैर किया। नदी के दोनों तटों पर खूबसूरत नज़ारे ,ऊंची- ऊंची बिल्डिंग एवं शानदार सजावट देखने को मिली!
दोपहर की 1:00 बज गए थे, ड्राइवर का फोन आया और हम गाड़ी की तरफ चल दिए, वहां से सीधे होटल आए विश्राम कर चाय पी चाइना मार्केट घूमने के लिए निकले, चाइना मार्केट कुआलंलमपुर में बेहद खूबसूरत और भीड़भाड़ वाली जगह है, वहां पर अनेकानेक रेस्टोरेंट है ।वहां के स्थानीय व विदेशी लोग मांसाहारी व्यंजन का लुफ्त ले रहे थे। चाइना मार्केट में कपड़े, खाने-पीने के समान, फल और भी लगभग जीवन में काम आने वाले सभी वस्तुओं का विशाल मार्केट था। लगभग 2 घंटे घूमने के बाद वापस होटल आए और रात्रि विश्राम के लिए सो गए।
सुबह सोकर उठे और दैनिक क्रिया से निवृत होकर फिर वही नाश्ते की टेबल नाश्ते के बाद ठीक 09:00 बजे ड्राइवर का फोन आया आज हमारा घूमने का जो दिन था वह 09:00 बजे से 5:00 बजे तक था। रूटिंन के अनुसार हम गाड़ी में सवार हुए और बाटू कब और उससे आगे केबल कार से पहाड़ी के ऊपर पहुंचकर विभिन्न प्रकार के मॉल और मेले का आज देखने का दिन था। सबसे पहले हम बाटू गुफा गए जो कि पहाड़ी के ऊपर लगभग 300 सीढ़ियां चढ़कर सबसे ऊपर गुफा में भगवान विष्णु की मूर्ति सहित तमाम मूर्तियों का मंदिर बना हुआ था। सबसे ऊपर मंदिरों के दर्शन करते हुए हम नीचे उतरते हुए लगभग 10 गुफाओं में दक्षिण भारतीय शैली से बनी मंदिरों का दर्शन किया । विभिन्न प्रकार के दिव्यता और भव्यता से भरपूर मंदिर बने हुए थे, जिसमें हिंदू देवी -देवताओं की अनेकों सुंदर मूर्तियां सुसज्जित थी. वहां काफी भीड़ थी और लोग सपरिवार पहुंचकर गुफाओं में बने मंदिरों का दर्शन कर रहे थे। प्रत्येक मंदिर में पुजारी थे, जो आरती ,पूजन और प्रसाद भक्तों को दे रहे थे ।
इस अद्भुत गुफा का दर्शन कर मन भक्ति भाव से अभिभूत हो गया। गुफा के बाहर बहुत बड़ी विष्णु भगवान की मूर्ति है, जो दर्शनीय है हैं और जो भी इस शहर में आता है यहां पर जरूर आता है ।लगभग 2 घंटे घूमने के बाद हम आगे केबल कार के लिए कार में सवार हो गए। लगभग 45 मिनट की यात्रा के बाद एक जापानी मंदिर आया। ड्राइवर ने गाड़ी पार्किंग की और हमें घूमने के लिए मंदिर के गेट तक छोड़ दिया ।वहां पहुंचकर हमने जापानी शैली में बने इस मंदिर को देखा, लिफ्ट से हम लगभग20 मंजिल ऊपर गये । वहां पहाड़ी को काटकर अनेकों मूर्तियां बनी हुई थी जिसमें दिखाया गया था कि व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार किस प्रकार सजा पाता है, अच्छे कर्म हो तो उसे अच्छी जगह ले जाया जाता है, बुरे कर्म हो तो उसे तरह-तरह की यातनाएं दी जाती है । मूर्तियों के रूप में वहां जापानी शैली में दिखाया गया था।
जैसे अपने भारत में “जैसी करनी वैसी भरनी” की झांकियां अक्सर हमें तीर्थ स्थलों को देखने को मिलती है! ठीक वैसा ही वहां भी नजारा था। सीढ़ियां चढ़कर लोग कंदराओं में बने इन झांकियां को देख रहे थे। जगह-जगह जो जापानी शैली की मूर्तियां थी, देवी -देवता थे ,लोग वहां अगरबत्ती जलाकर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए अथवा देवी- देवताओं के प्रति श्रद्धा प्रकट कर रहे थे। सपरिवार अनेकों जापानी, चाइनीस लोग जो बौद्ध धर्म को मानते हैं, वहां पर सब सपरिवार घूम रहे थे और अपने ईष्ट देवताओं को देखकर रोमांचित हो रहे थे ,वहां कुछ देर घूमने के बाद वहां से हम केबल कार के लिए गाड़ी में बैठकर चल पड़े।
केबल कार से लगभग आधा घंटा सफर तय करने के बाद अगल-बगल खूबसूरत नजारे देखते हुए हम लगभग ऊपर पहुंचे, वहां बहुत बड़ा मॉल बना हुआ था, लगभग 60 मंजिलों में फैला मॉल आधुनिकता से परिपूर्ण रेस्टोरेंट, बच्चों के खेलने के झूले और एक आधुनिक मेले के रूप में विकसित था। हम दोनों ने मेले का अवलोकन किया ।कुछ खरीदारी की, वहां खाने के लिए तो बहुत सारे होटल थे, पर कोई भी शाकाहारी होटल नहीं था। सब नॉनवेज थे, और लोग परिवार के साथ बैठकर नॉनवेज से बने विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का आनंद ले रहे थे। हमने दो कप मक्का मक्खन ली और खाने के बाद काफी देर घूमने के बाद ड्राइवर को फोन किया।इसी बीच जोरदार बारिश होने लगी। भींगते भागते गाड़ी तक पहुंच गये और हम वापस होटल पहुंचे ,रास्ते में हमने शाकाहारी होटल से जो कि दक्षिण भारतीय था, वहीं लिटिल इंडिया के नाम से मशहूर बाजार में स्थित एक दक्षिण भारतीय होटल से हमने खाना पैक करवाया और सीधे होटल पहुंच गए। आज काफी थकान हो गई थी, जल्दी-जल्दी भोजन कर निद्रा रानी की आगोश में हम चले गए।
सुबह तैयार होने के बाद नाश्ते की टेबल पर पहुंचे और वहां शाकाहारी टेबल से डोसा कुछ सलाद, कुछ फ्रूट और सादा चावल बिल्कुल लिक्विड रूप में था उसे एक कप लिया। नाश्ते के बाद ब्लैक कॉफी पीने पी रहे थे तभी मलेशिया के कुआलालंपुर में रहने वाले हमारे स्वामी जी का फोन आया कि आप कहां हो? तो हमने अपना पता बताया कि अमुक होटल में है स्वामी जी ने कहा मैं गाड़ी भेज रहा हूं, आप सीधा हमारे आश्रम पर पहुंचे ।
मुझे प्रसन्नता हुई की स्वामी जी ने फोन कर बुलाया और हमारी हार्दिक इच्छा थी स्वामी जी से मुलाकात हो।नियत समय पर ड्राइवर आया और हम स्वामी जी के निवास स्थान के लिए निकल गए। लगभग 45 मिनट यात्रा के बाद स्वामी जी का आश्रम आया वहां में ऋषिकेश से उनके स्वागत के लिए माला वगैरह ले गया था। उनका जोरदार स्वागत किया, स्वामी जी हमसे मिलकर बहुत खुश हुए।
यहां में स्वामी जी से मिलने की पूरी कहानी आपको अवश्य बताना चाहूंगा की किस प्रकार स्वामी जी ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया। स्वामी जी अक्सर ऋषिकेश में स्वामी दयानंद आश्रम में आते-जाते रहते हैं वहीं से उनसे हमारा परिचय हुआ।
मैं जब पांचवी कक्षा पास किया तो इतिहास भूगोल पढ़ने को मिला। बड़ा होकर दुनिया के विषय में पढ़कर मन में सपना जाग उठा कि मैं इस धरती के बने हुए अनेकों देश का भ्रमण करूंगा और परमात्मा की बनाई हुई विभिन्न जगहों का साक्षात्कार करूंगा।
ईश्वर ने मेरी यह बात नोट कर ली। कलांतर में मैं ऋषिकेश पहुंचा और विभिन्न आयामों से गुजरते हुए जे के स्टूडियो की स्थापना मेरे द्वारा की गई। आज से करीब 6 साल पहले स्टूडियो पर स्वामी जी संत के रूप में आए। आपसे मिलकर हृदय में एक अलग अनुभति हुई।आपको सभी लोग मलेशिया वाले बाबा के नाम से जानते थे, पुकारते थे। मलेशिया वाले बाबा का नाम सुनकर मेरे मन में भी आपके प्रति जिज्ञासा जागृत हुई। मैं जब आपको देखा तो बचपन के वे देखे सपने आपको देखकर हकीकत में बदलते हुए दिखाई दिए। खैर मन की बात मन में ही रह गई। परंतु यह इच्छा बलवती हो गई कि मलेशिया वाले बाबा जी जरूर हमें मलेशिया जाने में मार्ग दर्शन करेंगे। लेकिन इस बात को मन ही मन मैं दबा दिया। बात आई गई हो गई इस बीच बाबा जी का कई बार आना- जाना हुआ वह जब भी आते तो मेरे मन में ऐसा लगता है कि मलेशिया से बुलावा आया है । मैं स्वामी जी के घर पर उनसे मिलकर बहुत सारी बातें कर रहा हूं।
बाबा जी का सरल सुहृदय सभी के प्रति अपार स्नेह, चाहे कोई बड़ा हो या छोटा हो, बिना भेद-भाव के सभी को गर्मजोशी से मिलना, प्रत्येक का ख्याल रखना ये बहुत बड़ी बात है। उन्हें देखकर बार-बार देखकर बाबा तुलसीदास जी की यह चौपाई याद आ जाती थी-
“संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥
निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर सुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥”
“संत हृदय नवनीत समाना” का अर्थात् “संत का हृदय मक्खन के समान कोमल होता है. संत लोग बहुत दयालु और संवेदनशील होते हैं, जैसे मक्खन आसानी से पिघल जाता है, वैसे ही वे दूसरों के दुखों से जल्दी द्रवित हो जाते हैं.
बाबा जी के इस व्यवहार से हमें सीख मिलती है कि हमें भी दूसरों के प्रति दयालुता का भाव और संवेदनशील होना चाहिए।
बाबा जी जब भी आते थे हम लोगों को एक आत्मीय अपनत्व का एहसास कराते हैं। स्टूडियो में कार्यरत सभी कर्मचारी उनको देखकर खुश हो जाते थे, क्योंकि सभी को अपने सगे वालों से भी बढ़कर मानते हैं। बाबा जी का जो भी कार्य होता था ,पूरे मनोयोग से उसे शीघ्र ही करके दे देते थे बाबा जी हमारे दोनों बेटे तरुण राज तिवारी ,अनुराग तिवारी से बहुत प्रसन्न रहते हैं। और उन्हें ढेरों आशीर्वाद ,प्यार, स्नेह और दुलार देते हैं।
मन में यह विचार चल ही रहे थे कि छोटे बेटे अनुराग ने मुझसे बिना पूछे हुए मलेशिया का टिकट बुक कर दिया आने-जाने का और वहां चार दिनों तक ठहरने का इस बीच अनुराग ने स्वामी जी से जिक्र किया था कि मेरे मम्मी-पापा मलेशिया जाने वाले हैं ,तो स्वामी जी ने कहा था कि वह जब आएंगे तो मुझे मैसेज कर देना। अनुराग ने मैसेज किया लेकिन स्वामी की व्यस्तता के चलते मैसेज नहीं पढ़ पाए ,लेकिन मेरे मन के जो उद्गार थे, मन की जो सोच थी, मानस पटेल पर जो अंकित था, वह जोर लगाया और स्वामी जी ने शाम को मैसेज देखा, उसके दूसरे दिन हमारी वापसी थी। स्वामी जी ने मैसेज देखते ही मुझे संपर्क किया और कहे कि सुबह में गाड़ी भेजूंगा आ जाना। स्वामी जी ने गाड़ी भेजी और मैं स्वामी जी के मकान पर गया वहां उन्होंने दिल की दिल से हमें आशीर्वाद व स्वागत किया, जो अपने सगे वाली भी नहीं कर सकते थे। ठीक मेरे मन में जैसी कल्पना थी उसी प्रकार स्वामी जी ने हमें स्नेह, प्रेम और अपनत्व दिया।
स्वामी जी ने हमारा वहां पर बनाई हुई मंदिर में जहां अनेकों देवी- देवताओं की सुंदर मूर्तियां विराजमान हैं, स्वागत के साथ ही स्वामी जी ने अपने निवास स्थान के विभिन्न जगहों का दिखाया, सुंदर फोटोग्राफी की और दोपहर का लंच एक शानदार शाकाहारी होटल में साथ में किया। लंच करने के बाद स्वामी जी एक मशहूर मॉल में ले गए जहां उन्होंने वहां की विशेष रूप से मशहूर चीजों को लेकर मना करने के वावजूद हमें दिया।
एक व्यक्ति से हमारे लिए एयरपोर्ट के लिए शाम के लिए ढेरों सारा लजीज डीनर भिजवाए। एयरपोर्ट पर एक व्यक्ति को जो की वहीं पर कार्यरत थे उनको फोन कर बाबा जी ने सूचित कर दिया था।उस व्यक्ति ने बैट्री वाली गाड़ी से हमें बहुत ही अच्छे ढंग हमें सिक्स नंबर गेट के पास पहुंचा दिया ,जहां से हम रात्रि में फ्लाइट पकड़ सुबह दिल्ली आ गए ।
“आज के जमाने में इस भाग दौड़ की जिंदगी में कोई किसी का नहीं होता है। आए दिन संवेदनशीलताओं का अभाव देखने सुनने को मिलता है।आपसी रिश्ते जहां टूट रहे हैं, परिवार टूट रहे हैं, व्यक्ति- व्यक्ति से मिलने के लिए समय नहीं दे पा रहा है !चारों तरफ पैसे का बोलबाला है ,हर व्यक्ति अपना दबदबा कायम रखने के लिए प्रयासरत है और ऐसे में कोई व्यक्ति जो आपकी सोच से भी आगे आपको मान -सम्मान या समय निकालकर दिल से आपसे मिलता है तो बहुत ही सुकून मिलता है। हमारे पास रिश्तों को सहेजने का समय नहीं है। सनातन धर्म संस्कृति जो हमारे मनीषियों ने बनाया उससे विमुख होकर हम दुःखी हो रहें हैं। एकांकी होकर अवसादग्रस्त हो रहें हैं। संत श्री स्वामी सत्यप्रकाशानंद सरस्वती जी महाराज,अध्यक्ष आत्मविद्या वनम्, संस्थापक अध्यक्ष हिंदू पारंपरिक वेद अध्ययन संस्थान कुआलालंपुर मलेशिया, से मिलकर हमें ये सीखने को मिला कि जीवन में कोई छोटा -बड़ा नहीं होता है !व्यक्ति से परिवार है ,परिवार से समाज है ,समाज से राज्य है, राज्य से देश है और देश से सारा विश्व है इसलिए विश्व के प्रत्येक व्यक्ति से, पशु पक्षी से, प्रत्येक प्राणियों से स्नेह प्रेम बनाए रखना हमारी वैदिक और सनातनी व्यवस्था है। इस व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए सभी के साथ संजीदगी से प्रेम से पेश आना चाहिए। जीवन में सुखी होने का यही मूल मंत्र है।
मैं स्वामी जी को हृदय की गहराइयों से प्रणाम करता हूं। नमन करता हूं और आशा करता हूं की संपूर्ण प्राणियों के लिए उनका यह प्रेम और स्नेह बना रहे, वे स्वस्थ रहें और जीवों के कल्याण के लिए, सनातन धर्म के उत्थान के लिए हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखें ।
-जयकुमार तिवारी संपादक देवभूमि जेके न्यूज ,ऋषिकेश जिला देहरादून उत्तराखंड (भारत)

