
*आज का पंचांग*
*दिनाँक:-18/03/2023, शनिवार*
एकादशी, कृष्ण पक्ष,
चैत्र
(समाप्ति काल)
तिथि——-एकादशी 11:13:19 तक
पक्ष———————– कृष्ण
नक्षत्र———-श्रवण 24:28:18
योग————-शिव 23:51:58
करण———-बालव 11:13:19
करण———कौलव 21:41:11
वार——————— शनिवार
माह————————- चैत्र
चन्द्र राशि—————— मकर
सूर्य राशि——————- मीन
रितु———————— वसंत
आयन—————–उत्तरायण
संवत्सर—————– शुभकृत
संवत्सर (उत्तर) —————-नल
विक्रम संवत———— 2079
गुजराती संवत———— 2079
शक संवत—————- 1944
सूर्योदय————- 06:27:10
सूर्यास्त————– 18:27:50
दिन काल——— 12:00:40
रात्री काल———–11:58:12
चंद्रास्त—————14:49:22
चंद्रोदय————- 28:53:56
लग्न—- मीन 2°59′ , 332°59′
सूर्य नक्षत्र——– पूर्वा भाद्रपदा
चन्द्र नक्षत्र—————- श्रवण
नक्षत्र पाया—————- ताम्र
*🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩*
खी—- श्रवण 08:12:19
खू—- श्रवण 13:38:24
खे—- श्रवण 19:03:41
खो—- श्रवण 24:28:18
गा—- धनिष्ठा 29:52:24
*💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮*
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
==========================
सूर्य=मीन 02 : 29 पू o भा o , 4 दी
चन्द्र=मकर 12°:23, श्रवण, 1 खी
बुध =मीन 03°: 34′ पूoभाo’ 4 दी
शुक्र=मेष 07 °05, अश्विनी ‘ 3 चो
मंगल=मिथुन 02°30 ‘ मृगशिरा’ 3 का
गुरु=मीन 21°30 ‘ रेवती , 2 दो
शनि=कुम्भ 7°53 ‘ शतभिषा ‘ 1 गो
राहू=(व) मेष 12°08 अश्विनी , 4 ला
केतु=(व) तुला 12°08 स्वाति , 2 रे
*🚩💮🚩 शुभा$शुभ मुहूर्त 🚩💮🚩*
राहू काल 09:27 – 10:57 अशुभ
यम घंटा 13:58 – 15:28 अशुभ
गुली काल 06:27 – 07:57 अशुभ
अभिजित 12:03 – 12:52 शुभ
दूर मुहूर्त 08:03 – 08:51 अशुभ
वर्ज्यम 28:04* – 29:31* अशुभ
💮चोघडिया, दिन
काल 06:27 – 07:57 अशुभ
शुभ 07:57 – 09:27 शुभ
रोग 09:27 – 10:57 अशुभ
उद्वेग 10:57 – 12:28 अशुभ
चर 12:28 – 13:58 शुभ
लाभ 13:58 – 15:28 शुभ
अमृत 15:28 – 16:58 शुभ
काल 16:58 – 18:28 अशुभ
🚩चोघडिया, रात
लाभ 18:28 – 19:58 शुभ
उद्वेग 19:58 – 21:27 अशुभ
शुभ 21:27 – 22:57 शुभ
अमृत 22:57 – 24:27* शुभ
चर 24:27* – 25:57* शुभ
रोग 25:57* – 27:27* अशुभ
काल 27:27* – 28:56* अशुभ
लाभ 28:56* – 30:26* शुभ
💮होरा, दिन
शनि 06:27 – 07:27
बृहस्पति 07:27 – 08:27
मंगल 08:27 – 09:27
सूर्य 09:27 – 10:27
शुक्र 10:27 – 11:27
बुध 11:27 – 12:28
चन्द्र 12:28 – 13:28
शनि 13:28 – 14:28
बृहस्पति 14:28 – 15:28
मंगल 15:28 – 16:28
सूर्य 16:28 – 17:28
शुक्र 17:28 – 18:28
🚩होरा, रात
बुध 18:28 – 19:28
चन्द्र 19:28 – 20:28
शनि 20:28 – 21:27
बृहस्पति 21:27 – 22:27
मंगल 22:27 – 23:27
सूर्य 23:27 – 24:27
शुक्र 24:27* – 25:27
बुध 25:27* – 26:27
चन्द्र 26:27* – 27:27
शनि 27:27* – 28:26
बृहस्पति 28:26* – 29:26
मंगल 29:26* – 30:26
*🚩💮 उदयलग्न प्रवेशकाल 💮🚩*
मीन > 05:25 से 06:50 तक
मेष > 06:50 से 08:34 तक
वृषभ > 08:54 से 10:32 तक
मिथुन > 10:32 से 12:42 तक
कर्क > 12:42 से 15:02 तक
सिंह > 15:02 से 17:10 तक
कन्या > 17:10 से 21:40 तक
तुला > 21:40 से 23:36 तक
वृश्चिक > 23:36 से 00:06 तक
धनु > 00:06 से 02:03 तक
मकर > 02:03 से 03:30 तक
कुम्भ > 03: 30 से 05:22 तक
*🚩विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार*
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
*💮दिशा शूल ज्ञान————-पूर्व*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो लौंग अथवा कालीमिर्च खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*
*🚩 अग्नि वास ज्ञान -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*
15 + 11 + 7 + 1 = 34 ÷ 4 = 2 शेष
आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
*🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩*
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
केतु ग्रह मुखहुति
*💮 शिव वास एवं फल -:*
26 + 26 + 5 = 57 ÷ 7 = 1 शेष
कैलाश वास = शुभ कारक
*🚩भद्रा वास एवं फल -:*
*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*
*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*
*पापमोचनी एकादशी व्रत (सर्वेषां)*
*सर्वार्थ सिद्धि योग 24:28 तक*
*💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮*
मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः ।
मृतः स चाऽल्पदुःखाय यावज्जीवं जडोदहेत् ।।
।। चा o नी o।।
एक ऐसा बालक जो जन्मते वक़्त मृत था, एक मुर्ख दीर्घायु बालक से बेहतर है. पहला बालक तो एक क्षण के लिए दुःख देता है, दूसरा बालक उसके माँ बाप को जिंदगी भर दुःख की अग्नि में जलाता है.
*🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩*
गीता -: अक्षरब्रह्म योग अo-08
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च ।,
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥,
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।,
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥,
सब इंद्रियों के द्वारों को रोककर तथा मन को हृद्देश में स्थिर करके, फिर उस जीते हुए मन द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्म संबंधी योगधारणा में स्थित होकर जो पुरुष ‘ॐ’ इस एक अक्षर रूप ब्रह्म को उच्चारण करता हुआ और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुण ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है, वह पुरुष परम गति को प्राप्त होता है॥,12-13॥,
*💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮*
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
🐏मेष
रुका हुआ धन मिल सकता है। निवेश शुभ रहेगा। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। प्रसन्नता रहेगी। स्वयं के ही प्रयासों से जनप्रियता एवं मान-सम्मान मिलेगा। रुका काम समय पर पूरा होने से आत्मविश्वास बढ़ेगा। व्यवसाय लाभप्रद रहेगा, नई योजनाएं बनेंगी।
🐂वृष
वस्तुएं संभालकर रखें। जोखिम न लें। नए संबंधों के प्रति सतर्क रहें। भूल करने से विरोधी बढ़ेंगे। कार्यक्षेत्र का विकास एवं विस्तार होगा। उपहार मिल सकता है। संतान की चिंता दूर होगी। अप्रत्याशित खर्च होंगे। तनाव रहेगा। दूसरों के झगड़ों में न पड़ें।
👫मिथुन
अप्रत्याशित लाभ होगा। यात्रा होगी। व्यावसायिक अथवा निजी काम से सुखद यात्रा हो सकती है। पठन-पाठन में रुचि बढ़ेगी। दूसरों से न उलझें। आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे। वरिष्ठ जन सहायता करेंगे।
🦀कर्क
तंत्र-मंत्र में रुचि बढ़ेगी। यात्रा मनोरंजक रहेगी। निवेश शुभ रहेगा। बाहरी सहायता से काम होंगे। ईश्वर में रुचि बढ़ेगी। कामकाज की अनुकूलता रहेगी। व्यावसायिक श्रेष्ठता का लाभ मिलेगा। आपसी संबंधों को महत्व दें। पूंजी संचय की बात बनेगी।
🐅सिंह
घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। व्यवसाय ठीक चलेगा। लाभ होगा। व्यापार-व्यवसाय अच्छा चलेगा। कार्यों में विलंब से चिंता होगी। मानसिक उद्विग्नता रहेगी। पारिवारिक जीवन संतोषप्रद रहेगा।
🙍♀️कन्या
संपत्ति के बड़े सौदे बड़ा लाभ दे सकते हैं। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। प्रसन्नता बनी रहेगी। व्यापार में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। कार्य के विस्तार की योजनाएं बनेंगी। स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही न करें। पठन-पाठन में रुचि बढ़ेगी।
⚖️तुला
वरिष्ठ जन सहायता करेंगे। रुके कार्यों में गति आएगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रोजगार बढ़ेगा। सतर्कता से कार्य करें। संतान के व्यवहार से सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है। व्यापार में नए अनुबंध आज नहीं करें। आर्थिक तंगी रहेगी।
🦂वृश्चिक
चोट व रोग से बचें। जल्दबाजी से हानि होगी। दूसरों पर विश्वास हानि देगा। कार्य में बाधा होगी। पत्नी से आश्वासन मिलेगा। स्वयं के निर्णय लाभप्रद रहेंगे। मानसिक संतोष, प्रसन्नता रहेगी। नए विचार, योजना पर चर्चा होगी। दूसरों की नकल न करें।
🏹धनु
घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। कार्य पूर्ण होंगे। आय बढ़ेगी। मनोरंजक यात्रा होगी। प्रसन्नता रहेगी। सहयोगी मदद नहीं करेंगे। व्ययों में कटौती करने का प्रयास करें। परिवार में प्रसन्नता का वातावरण रहेगा। व्यापार के कार्य से बाहर जाना पड़ सकता है।
🐊मकर
शोक समाचार मिल सकता है। काम में मन नहीं लगेगा। विवाद से बचें। मेहनत अधिक होगी। आवास संबंधी समस्या हल होगी। आलस्य न करें। सोचे काम समय पर नहीं हो पाएंगे। व्यावसायिक चिंता रहेगी। संतान के व्यवहार से कष्ट होगा।
🍯कुंभ
पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। बौद्धिक कार्य सफल रहेंगे। प्रसन्नता रहेगी। धनार्जन होगा। रोजगार में उन्नति एवं लाभ की संभावना है। लाभदायक समाचार मिलेंगे। सामाजिक एवं राजकीय ख्याति में अभिवृद्धि होगी। व्यापार अच्छा चलेगा।
🐟मीन
पुराने मित्र व संबंधी मिलेंगे। अच्छी खबर मिलेगी। प्रसन्नता रहेगी। जोखिम न लें। लाभ होगा। कार्यपद्धति में विश्वसनीयता बनाएं रखें। आर्थिक अनुकूलता रहेगी। रुका धन मिलने से धन संग्रह होगा। राज्यपक्ष से लाभ के योग हैं। नई योजनाओं की शुरुआत होगी।
प्रेरक प्रसंग –
*भावी को कोई नहीं मिटा सकता*
—‐‐————————————–
*होनी को कोई नहीं टाल सकता*
*एक समय की बात है। एक बहुत ही ज्ञानी पण्डित था। वह अपने एक बचपन के घनिष्ट मित्र से मिलने के लिए किसी दूसरे गाँव जा रहा था जो कि बचपन से ही गूंगा व एक पैर से अपाहिज था। उसका गांव काफी दूर था और रास्ते में कई और छोटे-छोटे गांव भी पडते थे।*
*पण्डित अपनी धुन में चला जा रहा था कि रास्ते में उसे एक आदमी मिल गया, जो दिखने मे बडा ही हष्ठ-पुष्ठ था, वह भी पण्डित के साथ ही चलने लगा। पण्डित ने सोचा कि चलो अच्छा ही है, साथ-साथ चलने से रास्ता जल्दी कट जायेगा। पण्डित ने उस आदमी से उसका नाम पूछा तो उस आदमी ने अपना नाम महाकालबताया। पण्डित को ये नाम बडा अजीब लगा, लेकिन उसने नाम के विषय में और कुछ पूछना उचित नहीं समझा। दोनों धीरे-धीरे चलते रहे तभी रास्त में एक गाँव आया। महाकाल ने पण्डित से कहा- तुम आगे चलो, मुझे इस गाँव मे एक संदेशा देना है। मैं तुमसे आगे मिलता हुं।*
*“ठीक है” कहकर पण्डित अपनी धुन में चलता रहा तभी एक भैंसे ने एक आदमी को मार दिया और जैसे ही भैंसे ने आदमी को मारा, लगभग तुरन्त ही महाकाल वापस पण्डित के पास पहुंच गया।*
*चलते-चलते दोनों एक दूसरे गांव के बाहर पहुंचे जहां एक छोटा सा मन्दिर था। ठहरने की व्यवस्था ठीक लग रही थी और क्योंकि पण्डित के मित्र का गांव अभी काफी दूर था साथ ही रात्रि होने वाली थी, सो पण्डित ने कहा- रात्रि होने वाली है। पूरा दिन चले हैं, थकावट भी बहुत हो चुकी है इसलिए आज की रात हम इसी मन्दिर में रूक जाते हैं। भूख भी लगी है, सो भोजन भी कर लेते हैं और थोडा विश्राम करके सुबह फिर से प्रस्थान करेंगे।*
*महाकाल ने जवाब दिया- ठीक है, लेकिन मुझे इस गाँव में किसी को कुछ सामान देना है, सो मैं देकर आता हुं, तब तक तुम भोजन कर लो, मैं बाद मे खा लुंगा।”*
*और इतना कहकर वह चला गया लेकिन उसके जाते ही कुछ देर बाद उस गाँव से धुंआ उठना शुरू हुआ और धीरे-धीरे पूरे गांव में आग लग गई थी । पण्डित को आर्श्चय हुआ। उसने मन ही मन सोचा कि- जहां भी ये महाकाल जाता है, वहां किसी न किसी तरह की हानि क्यों हो जाती है? जरूर कुछ गडबड है।*
*लेकिन उसने महाकाल से रात्रि में इस बात का कोई जिक्र नहीं किया। सुबह दोनों ने फिर से अपने गन्तव्य की ओर चलना शुरू किया। कुछ देर बाद एक और गाँव आया और महाकाल ने फिर से पण्डित से कहा कि- पण्डित जी… आप आगे चलें। मुझे इस गांव में भी कुछ काम है, सो मैं आपसे आगे मिलता हुँ’।*
*इतना कहकर महाकाल जाने लगा। लेकिन इस बार पण्डित आगे नहीं बढा बल्कि खडे होकर महाकाल को देखता रहा कि वह कहां जाता है और करता क्या है।*
*तभी लोगों की आवाजें सुनाई देने लगीं कि एक आदमी को सांप ने डस लिया और उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई। ठीक उसी समय महाकाल फिर से पण्डित के पास पहुंच गया। लेकिन इस बार पण्डित को सहन न हुआ। उसने महाकाल से पूछ ही लिया कि- तुम जिस गांव में भी जाते हो, वहां कोई न कोई नुकसान हो जाता है? क्या तुम मुझे बता सकते हो कि आखिर ऐसा क्याें होता है?*
*महाकाल ने जवाब दिया: पण्डित जी… आप मुझे बडे ज्ञानी मालुम पडे थे, इसीलिए मैं आपके साथ चलने लगा था क्योंकि ज्ञानियाें का संग हमेंशा अच्छा होता है। लेकिन क्या सचमुच आप अभी तक नहीं समझे कि मैं कौन हुँ?*
*पण्डित ने कहा: मैं समझ तो चुका हुँ, लेकिन कुछ शंका है, सो यदि आप ही अपना उपयुक्त परिचय दे दें, तो मेरे लिए आसानी होगी।*
*महाकल ने जवाब दिया कि- मैं यमदूत हुँ और यमराज की आज्ञा से उन लोगों के प्राण हरण करता हुँ जिनकी आयु पूर्ण हो चुकी है।*
*हालांकि पण्डित को पहले से ही इसी बात की शंका थी। फिर भी महाकाल के मुंह से ये बात सुनकर पण्डित थोडा घबरा गया लेकिन फिर हिम्मत करके पूछा कि- अगर ऐसी बात है और तुम सचमुच ही यमदूत हो, तो बताओ अगली मृत्यु किसकी है?*
*यमदूत ने जवाब दिया कि- अगली मृत्यु तुम्हारे उसी मित्र की है, जिसे तुम मिलने जा रहे हो और उसकी मृत्यु का कारण भी तुम ही होगे।*
*ये बात सुनकर पण्डित ठिठक गया और बडे पशोपेश में पड गया कि यदि वास्तव में वह महाकाल एक यमदूत हुआ तो उसकी बात सही होगी और उसके कारण मेरे बचपन के सबसे घनिष्ट मित्र की मृत्यु हो जाएगी। इसलिए बेहतर यही है कि मैं अपने मित्र से मिलने ही न जाऊं, कम से कम मैं तो उसकी मृत्यु का कारण नहीं बनुंगा। तभी महाकाल ने कहा कि-*
*तुम जो सोंच रहे हो, वो मुझे भी पता है लेकिन तुम्हारे अपने मित्र से मिलने न जाने के विचार से नियति नहीं बदल जाएगी। तुम्हारे मित्र की मृत्यु निश्चित है और वह अगले कुछ ही क्षणों में घटित होने वाली है।*
*महाकाल के मुख से ये बात सुनते ही पण्डित को झटका लगा क्योंकि महाकाल ने उसके मन की बात जान ली थी जो कि किसी सामान्य व्यक्ति के लिए तो सम्भव ही नहीं थी। फलस्वरूप पण्डित को विश्वास हो गया कि महाकाल सचमुच यमदूत ही है। इसलिए वह अपने मित्र की मृत्यु का कारण न बने इस हेतु वह तुरन्त पीछे मुडा और फिर से अपने गांव की तरफ लौटने लगा।*
*परन्तु जैसे ही वह मुडा, सामने से उसे उसका मित्र उसी की ओर तेजी से आता हुआ दिखाई दिया जो कि पण्डित को देखकर अत्यधिक प्रसन्न लग रहा था। अपने मित्र के आने की गति को देख पण्डित को ऐसा लगा जैसे कि उसका मित्र काफी समय से उसके पीछे-पीछे ही आ रहा था लेकिन क्योंकि वह बचपन से ही गूूंगा व एक पैर से अपाहिज था, इसलिए न तो पण्डित तक पहुंच पा रहा था न ही पण्डित को आवाज देकर रोक पा रहा था।*
*लेकिन जैसे ही वह पण्डित के पास पहुंचा, अचानक न जाने क्या हुआ और उसकी मृत्यु हो गई। पण्डित हक्का-बक्का सा आश्चर्य भरी नजरों से महाकाल की ओर देखने लगा जैसे कि पूछ रहा हो कि आखिर हुआ क्या उसके मित्र को। महाकाल, पण्डित के मन की बात समझ गया और बोला-*
*तुम्हारा मित्र पिछले गांव से ही तुम्हारे पीछे-पीछे आ रहा था लेकिन तुम समझ ही सकते हो कि वह अपाहिज व गूंगा होने की वजह से ही तुम तक नहीं पहुंच सका। उसने अपनी सारी ताकत लगाकर तुम तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन बुढापे में बचपन जैसी शक्ति नहीं होती शरीर में, इसलिए हृदयाघात की वजह से तुम्हारे मित्र की मृत्यु हो गई और उसकी वजह हो तुम क्योंकि वह तुमसे मिलने हेतु तुम तक पहुंचने के लिए ही अपनी सीमाओं को लांघते हुए तुम्हारे पीछे भाग रहा था*
*अब पण्डित को पूरी तरह से विश्वास हो गया कि महाकाल सचमुच ही यमदूत है और जीवों के प्राण हरण करना ही उसका काम है। चूंकि पण्डित एक ज्ञानी व्यक्ति था और जानता था कि मृत्यु पर किसी का कोई बस नहीं चल सकता व सभी को एक न एक दिन मरना ही है, इसलिए उसने जल्दी ही अपने आपको सम्भाल लिया लेकिन सहसा ही उसके मन में अपनी स्वयं की मृत्यु के बारे में जानने की उत्सुकता हुई। इसलिए उसने महाकाल से पूछा- अगर मृत्यु मेरे मित्र की होनी थी, तो तुम शुरू से ही मेरे साथ क्यों चल रहे थे?*
*महाकाल ने जवाब दिया- मैं, तो सभी के साथ चलता हुं और हर क्षण चलता रहता हुं, केवल लोग मुझे पहचान नहीं पाते क्योंकि लोगों के पास अपनी समस्याओं के अलावा किसी और व्यक्ति, वस्तु या घटना के संदर्भ में सोंचने या उसे देखने, समझने का समय ही नहीं है।*
*पण्डित ने आगे पूछा- तो क्या तुम बता सकते हो कि मेरी मृत्यु कब और कैसे होगी?*
*महाकाल ने कहा- हालांकि किसी भी सामान्य जीव के लिए ये जानना उपयुक्त नहीं है, क्योंकि कोई भी जीव अपनी मृत्यु के संदर्भ में जानकर व्यथित ही होता है, लेकिन तुम ज्ञानी व्यक्ति हो और अपने मित्र की मृत्यु को जितनी आसानी से तुमने स्वीकार कर लिया है, उसे देख मुझे ये लगता है कि तुम अपनी मृत्यु के बारे में जानकर भी व्यथित नहीं होगे। सो, तुम्हारी मृत्यु आज से ठीक छ: माह बाद आज ही के दिन लेकिन किसी दूसरे राजा के राज्य में फांसी लगने से होगी और आश्चर्य की बात ये है कि तुम स्वयं खुशी से फांसी को स्वीकार करोगे। इतना कहकर महाकाल जाने लगा क्योंकि अब उसके पास पण्डित के साथ चलते रहने का कोई कारण नहीं था।*
*पण्डित ने अपने मित्र का यथास्थिति जो भी कर्मकाण्ड सम्भव था, किया और फिर से अपने गांव लौट आया। लेकिन कोई व्यक्ति चाहे जितना भी ज्ञानी क्यों न हो, अपनी मृत्यु के संदर्भ में जानने के बाद कुछ तो व्यथित होता ही है और उस मृत्यु से बचने के लिए कुछ न कुछ तो करता ही है सो पण्डित ने भी किया।*
*चूंकि पण्डित विद्वान था इसलिए उसकी ख्याति उसके राज्य के राजा तक थी। उसने सोंचा कि राजा के पास तो कई ज्ञानी मंत्राी होते हैं ओर वे उसकी इस मृत्यु से सम्बंधित समस्या का भी कोई न कोई समाधान तो निकाल ही देंगे। इसलिए वह पण्डित राजा के दरबार में पहुंचा और राजा को सारी बात बताई। राजा ने पण्डित की समस्या को अपने मंत्रियों के साथ बांटा और उनसे सलाह मांगी।*
*अन्त में सभी की सलाह से ये तय हुआ कि यदि पण्डित की बात सही है, तो जरूर उसकी मृत्यु 6 महीने बाद होगी लेकिन मृत्यु तब होगी, जबकि वह किसी दूसरे राज्य में जाएगा। यदि वह किसी दूसरे राज्य जाए ही न, तो मृत्यु नहीं होगी। ये सलाह राजा को भी उपयुक्त लगी सो उसने पण्डित के लिए महल में ही रहने हेतु उपयुक्त व्यवस्था करवा दी। अब राजा की आज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति उस पण्डित से नहीं मिल सकता था लेकिन स्वयं पण्डित कहीं भी आ-जा सकता था ताकि उसे ये न लगे कि वह राजा की कैद में है। हालांकि वह स्वयं ही डर के मारे कहीं आता-जाता नहीं था।*
*धीरे-धीरे पण्डित की मृत्यु का समय नजदीक आने लगा और आखिर वह दिन भी आ गया, जब पण्डित की मृत्यु होनी थी। सो, जिस दिन पण्डित की मृत्यु होनी थी, उससे पिछली रात पण्डित डर के मारे जल्दी ही सो गया ताकि जल्दी से जल्दी वह रात और अगला दिन बीत जाए और उसकी मृत्यु टल जाए। लेकिन स्वयं पण्डित को नींद में चलने की बीमारी थी और इस बीमारी के बारे में वह स्वयं भी नहीं जानता था, इसलिए राजा या किसी और से इस बीमारी का जिक्र करने अथवा किसी चिकित्सक से इस बीमारी का ईलाज करवाने का तो प्रश्न ही नहीं था।*
*चूंकि पण्डित अपनी मृत्यु को लेकर बहुत चिन्तित था और नींद में चलने की बीमारी का दौरा अक्सर तभी पडता है, जब ठीक से नींद नहीं आ रही होती, सो उसी रात पण्डित रात को नींद में चलने का दौरा पडा, वह उठा और राजा के महल से निकलकर अस्तबल में आ गया। चूंकि वह राजा का खास मेहमान था, इसलिए किसी भी पहरेदार ने उसे न ताे रोका न किसी तरह की पूछताछ की। अस्तबल में पहुंचकर वह सबसे तेज दौडने वाले घोडे पर सवार होकर नींद की बेहोशी में ही राज्य की सीमा से बाहर दूसरे राज्य की सीमा में चला गया। इतना ही नहीं, वह दूसरे राज्य के राजा के महल में पहुंच गया और संयोग हुआ ये कि उस महल में भी किसी पहरेदार ने उसे नहीं रोका न ही कोई पूछताछ की क्योंकि सभी लोग रात के अन्तिम प्रहर की गहरी नींद में थे।*
*वह पण्डित सीधे राजा के शयनकक्ष में पहुंच गया। रानी के एक ओर उस राज्य का राजा सो रहा था, दूसरी और स्वयं पण्डित जाकर लेट गया। सुबह हुई, तो राजा ने पण्डित को रानी की बगल में सोया हुआ देखा। राजा बहुत क्रोधित हुआ। पण्डित काे गिरफ्तार कर लिया गया।*
*पण्डित को तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह आखिर दूसरे राज्य में और सीधे ही राजा के शयनकक्ष में कैसे पहुंच गया। लेकिन वहां उसकी सुनने वाला कौन था। राजा ने पण्डित को राजदरबार में हाजिर करने का हुक्म दिया। कुछ समय बाद राजा का दरबार लगा, जहां राजा ने पण्डित को देखा और देखते ही इतना क्रोधित हुआ कि पण्डित को फांसी पर चढा दिए जाने का फरमान सुना दिया।*
*फांसी की सजा सुनकर पण्डित कांप गया। फिर भी हिम्मत कर उसने राजा से कहा कि महाराज मैं नहीं जानता कि मैं इस राज्य में कैसे पहुंचा। मैं ये भी नहीं जानता कि मैं आपके शयनकक्ष में कैसे आ गया और आपके राज्य के किसी भी पहरेदार ने मुझे रोका क्यों नहीं, लेकिन मैं इतना जानता हुं कि आज मेरी मृत्यु होनी थी और होने जा रही है।*
*राजा को ये बात थोडी अटपटी लगी। उसने पूछा- तुम्हें कैसे पता कि आज तुम्हारी मृत्यु होनी थी? कहना क्या चाहते हो तुम?*
*राजा के सवाल के जवाब में पण्डित से पिछले 6 महीनों की पूरी कहानी बता दी और कहा कि- महाराज… मेरा क्या, किसी भी सामान्य व्यक्ति का इतना साहस कैसे हो सकता है कि वह राजा की उपस्थिति में राजा के ही कक्ष में रानी के बगल में सो जाए। ये तो सरासर आत्महत्या ही होगी और मैं दूसरे राज्य से इस राज्य में आत्महत्या करने क्यों आऊंगा।*
*राजा को पण्डित की बात थोडी उपयुक्त लगी लेकिन राजा ने सोंचा कि शायद वह पण्डित मृत्यु से बचने के लिए ही महाकाल और अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी का बहाना बना रहा है। इसलिए उसने पण्डित से कहा कि – यदि तुम्हारी बात सत्य है, और आज तुम्हारी मृत्यु का दिन है, जैसाकि महाकाल ने तुमसे कहा है, तो तुम्हारी मृत्यु का कारण मैं नहीं बनुंगा लेकिन यदि तुम झूठ कह रहे हो, तो निश्चित ही आज तुम्हारी मृत्यु का दिन है।*
*चूंकि पडौसी राज्य का राजा उसका मित्र था, इसलिए उसने तुरन्त कुछ सिपाहियों के साथ दूसरे राज्य के राजा के पास पत्र भेजा और पण्डित की बात की सत्यता का प्रमाण मांगा।*
*शाम तक भेजे गए सैनिक फिर से लौटे और उन्होंने आकर बताया कि- महाराज… पण्डित जो कह रहा है, वह सच है। दूसरे राज्य के राजा ने पण्डित को अपने महल में ही रहने की सम्पूर्ण व्यवस्था दे रखी थी और पिछले 6 महीने से ये पण्डित राजा का मेहमान था। कल रात राजा स्वयं इससे अन्तिम बार इसके शयन कक्ष में मिले थे और उसके बाद ये इस राज्य में कैसे पहुंच गया, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। इसलिए उस राज्य के राजा के अनुसार पण्डित को फांसी की सजा दिया जाना उचित नहीं है।*
*लेकिन अब राजा के लिए एक नई समस्या आ गई। चूंकि उसने बिना पूरी बात जाने ही पण्डित को फांसी की सजा सुना दी थी, इसलिए अब यदि पण्डित को फांसी न दी जाए, तो राजा के कथन का अपमान हो और यदि राजा द्वारा दी गई सजा का मान रखा जाए, तो पण्डित की बेवजह मृत्यु हो जाए।*
*राजा ने अपनी इस समस्या का जिक्र अपने अन्य मंत्रियों से किया और सभी मंत्रियों ने आपस में चर्चा कर ये सुझाव दिया कि- महाराज… आप पण्डित को कच्चे सूत के एक धागे से फांसी लगवा दें। इससे आपके वचन का मान भी रहेगा और सूत के धागे से लगी फांसी से पण्डित की मृत्यु भी नहीं होगी, जिससे उसके प्राण भी बच जाऐंगे।*
*राजा को ये विचार उपयुक्त लगा और उसने ऐसा ही आदेश सुनाया। पण्डित के लिए सूत के धागे का फांसी का फन्दा बनाया गया और नियमानुसार पण्डित को फांसी पर चढाया जाने लगा। सभी खुश थे कि न तो पण्डित मरेगा न राजा का वचन झूठा पडेगा। पण्डित को भी विश्वास था कि सूत के धागे से तो उसकी मृत्यु नहीं होगी इसलिए वह भी खुशी-खुशी फांसी चढने को तैयार था, जैसा कि महाकाल ने उसे कहा था।*
*लेकिन जैसे ही पण्डित को फांसी दी गई, सूत का धागा तो टूट गया लेकिन टूटने से पहले उसने अपना काम कर दिया। पण्डित के गले की नस कट चुकी थी उस सूत के धागे से और पण्डित जमीन पर पडा तडप रहा था, हर धडकन के साथ उसके गले से खून की फूहार निकल रही थी और देखते ही देखते कुछ ही क्षणों में पण्डित का शरीर पूरी तरह से शान्त हो गया। सभी लोग आश्चर्यचकित, हक्के-बक्के से पण्डित को मरते हुए देखते रहे। किसी को भी विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक कमजाेर से सूत के धागे से किसी की मृत्यु हो सकती है लेकिन घटना घट चुकी थी, नियति ने अपना काम कर दिया था।*
*जो होना होता है, वह होकर ही रहता है। हम चाहे जितनी सावधानियां बरतें या चाहे जितने ऊपाय कर लें, लेकिन हर घटना और उस घटना का सारा ताना-बाना पहले से निश्चित है जिसे हम रत्ती भर भी इधर-उधर नहीं कर सकते। इसीलिए ईश्वर ने हमें भविष्य जानने की क्षमता नहीं दी है, ताकि हम अपने जीवन को ज्यादा बेहतर तरीके से जी सकें*