साहित्य सृजन।
*साहित्य शिल्पी -सौम्या त्यागी की एक कविता – “माँ की कोख़”*

जब तक मैं माँ की कोख़ में थी ,
तब तक सबकी आंखों का तारा थी मैं ।
पर 9 महीने बाद जब पता चला कि लड़की हूं मैं,
तब सबकी नजरों में अचानक चुभने लगी मैं ।
सिर्फ माँ ही थी जिसने नाज़ों से पाला है मुझे,
बाकी किसी ने एक बार भी दुलारा नहीं मुझे।
सब को लड़के की चाहत थी घर में ,
जो ना होने पर सुनना माँ को पड़ा।
तेरी गलती थी जो लड़की पैदा हुई,
यह सब ताने सुनकर माँ ने खूब सहा।
पापा ,दादी ,दादा इन सबके हिस्से ,
का प्यार मेरी माँ ने मुझे दिया ।
बोझ समझते हैं सब मुझे घर मे,
यह एहसास उन्होंने मुझे कभी होने नहीं दिया।